![मुस्लिम पर्सनल लॉ](https://www.requestlegalservice.in/wp-content/uploads/2021/05/मुस्लिम-पर्सनल-लॉ.jpg)
मुस्लिम पर्सनल लॉ अक्सर विवाद की वजह से चर्चा में रहा हैं। सबसे पहले यह चर्चा में साल 1985 में आया था जब शाह बानो नाम की एक महिला ने अपने पहले पति से गुजारा भत्ता लेने के लिए कोर्ट में याचिका दी थी।
अब की बात करे तो ये एक बार फिर से चर्चा में आ गया हैं जिसका मुख्य कारण कुकाशीपुर की सायरा बानो का तीन तलाक़ को चुनौती देना हैं।
ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मुस्लिम पर्सनल लॉ के बारे में जानकारी नहीं हैं। दरअसल, ये लॉ पूरी तरह से शरियत पर आधारित हैं।
शरीयत की बात करे तो ये पूरी तरह से कुरान और पैग़ंबर मोहम्मद की शिक्षाओं की शिक्षाओं पर आधारित हैं। इस लॉ के दायरे में मुसलमानों की शादी, विरासत, बच्चो की हिरासत, और तलाक़ जैसे मुद्दे आते हैं।
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की शुरुआत साल 1937 में हुई थी। अगर आप इस लॉ के बारे में कुछ ज्यादा नहीं जानते हैं तो हम आपको इस आर्टिकल में इस लॉ से जुड़ी हर जानकारी दे रहे हैं जैसे इसकी शुरुआत कैसे हुई, मुस्लिम पर्सनल क्या हैं? और कैसे सरकार इसको लेकर दुविधा में आ जाती हैं?
शरीयत पहचान में कैसे आई?
जब इस्लाम नहीं आया था तो उससे पहले अरब में कबायली सामाजिक ढांचा हुआ करता था जहाँ पर उनके खुद के बनाए हुए नियम व् कानून चलते थे क्यूंकि कुछ भी लिखित में नहीं था।
लेकिन जैसे-जैसे जरूरत महसूस हुई, वैसे-वैसे कानून भी बदलते गए।
आख़िरकार, 7वीं सदी में मुस्लिम समुदाय की स्थापना हुई और काबिली रीती रिवाज़ पर कुरान का असर होने लगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस्लामिक समाज शरीयत के मुताबिक चलता हैं जिसमे पैगंबर के काम और शब्द भी शामिल हैं जिसे हदीस कहा जाता है।
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ कैसे लागू हुआ?
साल 1937, जब भारत देश पर अंग्रेज शासन कर रहे थे तो वो चाहते थे कि भारतीयों पर उनकी संस्कृति और धर्म के मुताबिक शासन किया जाए। जिसकी वजह से भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 में लागू हुआ।
जिसका मुख्य कारण भारतीय मुस्लिमो के लिए एक इस्लामिक कोड तैयार करना था जिसके तहत शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक विवादों के फैसले किये जाए।
इस एक्ट के मुताबिक़ व्यक्तिगत विवाद में सरकार कोई दखलंदाजी नहीं कर सकती।
शरीयत एप्लिकेशन एक्ट से आखिर सरकार का टकराव क्यों होता हैं?
देश में ऐसे कई मामले चर्चा में आए हैं जहाँ धार्मिक अधिकारों की वजह से महिला की सुरक्षा का टकराव हुआ हैं।
ऐसा ही एक केस 1985 में आया था। जब 65 वर्षीय महिला शाह बानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दी थी। जो कानून के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट के लिए बिल्कुल ठीक थी लेकिन मुस्लिम समुदाय ने इसको कुरान के खिलाफ बताया था।
उसी समय कांग्रेस सरकार ने Muslim Women Protection of Rights on Divorce Act पास किया था जिसके मुताबिक़ पति को तलाक़ शुदा महिला को गुज़ारा भत्ता देना ही होगा।
लेकिन इसके साथ-साथ ये भी लागू किया गया था कि पति को केवल इद्दत तक ही गुज़ारा भत्ता देना होगा जो तलाक के 90 दिनों बाद तक ही होती है।
निष्कर्ष: मुस्लिम पर्सनल लॉ भारतीय कानून में एक नई क्रांति लेकर आया हैं जिसे सभी भारतीय मुस्लिम लोगो को अपनाना चाहिए। अगर आप इससे जुड़ी और जानकारी लेना चाहते हैं तो दिए गए फॉर्म को सही जानकारी के साथ भरकर सबमिट करे। हमारी टीम जल्द ही आपसे जुडकर आपके सवालों का जवाब देगी।